हम मन को नियंत्रित करते हैं तो क्या होता है?:श्रीकृष्ण की अर्जुन को सीख: जो व्यक्ति अपने मन का सेवक है, वह चिंतित, भ्रमित और अस्थिर रहता है
महाभारत के युद्ध के मैदान में जब अर्जुन का रथ युद्ध की ओर बढ़ रहा था, तभी अचानक उनका मन उन्हें रोक देता है। भय, संदेह और मोह अर्जुन की राह में खड़े हो जाते हैं। अर्जुन अपने सारथी यानी श्रीकृष्ण से रथ को दोनों सेनाओं के बीच ले जाने के लिए कहते हैं। जब रथ दोनों सेनाओं के बीच पहुंचता है, तब कौरव पक्ष में अर्जुन ने अपने कुटुंब के लोगों को देखा तो उन्होंने युद्ध करने का विचार त्याग दिया। उस समय श्रीकृष्ण ने गीता का उपदेश देते हुए अर्जुन को समझाया कि मनुष्य का मन उसका मित्र भी है और शत्रु भी। श्रीमद् भगवद् गीता की ये एक अमूल्य शिक्षा है, जो आज भी उतनी ही मददगार है। हमारा मन मित्र है या शत्रु? हमारा मन हमें मुक्त कर सकता है या बांध सकता है। अगर हम अपने मन के स्वामी बन जाते हैं, अपने मन को नियंत्रित कर लेते हैं तो जीवन में स्पष्टता, स्थिरता और आनंद का अनुभव करने लगते हैं। लेकिन यदि कोई व्यक्ति अपने मन का सेवक बन जाता है तो वह चिंता, भ्रम और अस्थिरता का शिकार हो जाता है। गीता में मन के बारे में श्रीकृष्ण कहते हैं कि- जिसने अपने मन को जीत लिया है, उसके लिए मन सबसे बड़ा मित्र है; लेकिन जिसने मन को नहीं जीता, उसका मन सबसे बड़ा शत्रु बन जाता है। मन अग्नि के समान है, नियंत्रित रहे तो प्रकाश फैलाता है, लेकिन यदि यह अनियंत्रित हो जाए तो व्यक्ति को जलाता है और अंधकार फैला देता है। गीता हमें यह नहीं कहती कि मन बुरा है, बल्कि गीता हमें संदेश देती है कि मन एक उपकरण है, जिसे प्रशिक्षित, अनुशासित और अंततः नियंत्रित किया जाना चाहिए। यदि हम मन के गुलाम बन जाएं तो क्या होता है? बहुत से लोग अनजाने में अपने मन के नियंत्रण में जीते हैं। इसकी वजह से लोगों को इन बातों का सामना करना पड़ता है... यदि हम मन के स्वामी बन जाएं तो क्या होगा? जब हम मन को नियंत्रित कर लेते हैं तो जीवन का अनुभव ही बदल जाता है- ये हैं मन को साधने के चार साधन गीता समस्या ही नहीं बताती, समाधान भी देती है, मन को साधने के 4 उपाय, जो गीता में बताए गए हैं: कैसे समझें कि हमने मन पर नियंत्रण पा लिया हैं? कुछ संकेत हैं जो दर्शाते हैं कि हम मन को नियंत्रित कर पा रहे हैं...

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