निर्जला एकादशी आज, पूरे दिन बिना पानी पिए होगा व्रत:महर्षि वेदव्यास के कहने पर द्वापर युग में भीम ने किया इस एकादशी का व्रत

आज ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी है। इसे निर्जला एकादशी कहते हैं। इसे पांडव और भीमसेनी एकादशी भी कहते हैं। इस दिन भगवान विष्णु की कृपा पाने के लिए पूरे दिन बिना पानी पिए निर्जल उपवास रखा जाता है। जल से भरे मटके पर आम, चीनी, पंखा, तोलिया रखकर दान किया जाता है। पद्म पुराण में लिखा है कि इस एकादशी का उपवास करने से सालभर की सभी एकादशियों जितना पुण्य मिलता है। इसलिए इस एकादशी पर अपने पितरों की शांति के लिए ठंडे पानी, भोजन, कपड़े, छाते और जूते-चप्पल का दान किया जाता है। ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र से करें भगवान विष्णु की पूजा क्यों कहते हैं निर्जला एकादशी इस तिथि पर निर्जल रहकर यानी बिना पानी पिए उपवास किया जाता है, इसीलिए इसे निर्जला एकादशी कहा गया है। उपवास करने वाले भक्त पानी भी नहीं पीते हैं। सुबह-शाम भगवान विष्णु की पूजा करते हैं और अगले दिन द्वादशी तिथि पर पूजा-पाठ के बाद भोजन ग्रहण करते हैं। महाभारत काल में भीम ने रखा था ये व्रत स्कंद पुराण में एकादशी महात्म्य नाम का अध्याय है। इसमें सालभर की सभी एकादशियों की जानकारी दी है। इस अध्याय में श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को एकादशियों का महत्व बताया है। निर्जला एकादशी के बारे में पांडव पुत्र भीम से जुड़ी कथा है। महाभारत काल में भीम ने इस एकादशी का उपवास किया था। तभी से इसे भीमसेनी एकादशी भी कहा गया है। ये व्रत महर्षि वेदव्यास ने पांडवों को चारों पुरुषार्थ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के लिए बताया था। तब भीम ने कहा कि पितामह, आपने एक माह में दो एकादशियों के उपवास की बात कही है। मैं एक दिन तो क्या, एक समय भी खाने के बिना नहीं रह सकता हूं। वेदव्यास ने भीम से कहा कि सिर्फ निर्जला एकादशी ही ऐसी है जो सालभर की सभी एकादशियों का पुण्य दिला सकती है। ये व्रत ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी पर होता है। तब इस दिन भीम ने व्रत किया था।

Jun 6, 2025 - 13:46
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निर्जला एकादशी आज, पूरे दिन बिना पानी पिए होगा व्रत:महर्षि वेदव्यास के कहने पर द्वापर युग में भीम ने किया इस एकादशी का व्रत
आज ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी है। इसे निर्जला एकादशी कहते हैं। इसे पांडव और भीमसेनी एकादशी भी कहते हैं। इस दिन भगवान विष्णु की कृपा पाने के लिए पूरे दिन बिना पानी पिए निर्जल उपवास रखा जाता है। जल से भरे मटके पर आम, चीनी, पंखा, तोलिया रखकर दान किया जाता है। पद्म पुराण में लिखा है कि इस एकादशी का उपवास करने से सालभर की सभी एकादशियों जितना पुण्य मिलता है। इसलिए इस एकादशी पर अपने पितरों की शांति के लिए ठंडे पानी, भोजन, कपड़े, छाते और जूते-चप्पल का दान किया जाता है। ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र से करें भगवान विष्णु की पूजा क्यों कहते हैं निर्जला एकादशी इस तिथि पर निर्जल रहकर यानी बिना पानी पिए उपवास किया जाता है, इसीलिए इसे निर्जला एकादशी कहा गया है। उपवास करने वाले भक्त पानी भी नहीं पीते हैं। सुबह-शाम भगवान विष्णु की पूजा करते हैं और अगले दिन द्वादशी तिथि पर पूजा-पाठ के बाद भोजन ग्रहण करते हैं। महाभारत काल में भीम ने रखा था ये व्रत स्कंद पुराण में एकादशी महात्म्य नाम का अध्याय है। इसमें सालभर की सभी एकादशियों की जानकारी दी है। इस अध्याय में श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को एकादशियों का महत्व बताया है। निर्जला एकादशी के बारे में पांडव पुत्र भीम से जुड़ी कथा है। महाभारत काल में भीम ने इस एकादशी का उपवास किया था। तभी से इसे भीमसेनी एकादशी भी कहा गया है। ये व्रत महर्षि वेदव्यास ने पांडवों को चारों पुरुषार्थ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के लिए बताया था। तब भीम ने कहा कि पितामह, आपने एक माह में दो एकादशियों के उपवास की बात कही है। मैं एक दिन तो क्या, एक समय भी खाने के बिना नहीं रह सकता हूं। वेदव्यास ने भीम से कहा कि सिर्फ निर्जला एकादशी ही ऐसी है जो सालभर की सभी एकादशियों का पुण्य दिला सकती है। ये व्रत ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी पर होता है। तब इस दिन भीम ने व्रत किया था।

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