गंगा दशहरा आज:भगवान विष्णु के चरणामृत से उत्पन्न हुई थीं देवनदी गंगा, पढ़िए गंगा की उत्पत्ति से धरती पर अवतरण तक की कथा

गुरुवार, 5 जून को गंगा दशहरा है। वराह पुराण के मुताबिक ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि पर हस्त नक्षत्र में स्वर्ग से गंगा नदी पृथ्वी पर अवतरित हुई थी। इसलिए इस तिथि को गंगा दशहरा कहते हैं। गंगा सभी पापों का नाश करने वाली नदी मानी गई है। पौराणिक मान्यता है कि राजा भागीरथ अपनी तपस्या के बल पर देवनदी गंगा को स्वर्ग से धरती पर ले आए थे। गंगा दशहरा पर जानिए गंगा नदी की उत्पत्ति और धरती पर अवतरित होने की कथा... लगभग 15-20 मिलियन साल से बह रही है गंगा हिमालय के गंगोत्री ग्लेशियर से गंगा निकली है। जियोलॉजिकल रिपोर्ट के अनुसार हिमालय पर्वतमाला लगभग 50 मिलियन वर्ष पहले बननी शुरू हुई, जब भारतीय टेक्टोनिक प्लेट यूरेशियन प्लेट से टकराई। इस टक्कर के कारण जमीन ऊपर उठने लगी और हिमालय पर्वत श्रृंखला का निर्माण हुआ। यह भूवैज्ञानिक प्रक्रिया आज भी जारी है, जिस कारण हिमालय की ऊंचाई हर साल कुछ मिलीमीटर बढ़ती है। गंगा नदी की शुरुआत लगभग 20-25 मिलियन वर्ष पहले मानी जाती है। हालांकि, गंगा नदी का लगातार धारा के रूप में बहना करीब 15-20 मिलियन वर्ष पहले शुरू हुआ। लगभग 2.5 लाख साल पहले गंगा की धारा स्थिर हुई और यह नदी के रूप में अपने मौजूदा रास्ते पर मैदानी इलाकों में बहने लगी। कथा - कैसे हुई गंगा की उत्पत्ति? गंगा की उत्पत्ति की एक कथा भगवान विष्णु के वामन अवतार से जुड़ी है। सतयुग में असुरों के राजा बलि ने देवताओं को पराजित कर दिया था और स्वर्ग पर कब्जा कर लिया था। इसके बाद दुखी देवता अपनी माता अदिति के पास पहुंचे और अपनी समस्या बताई। अदिति ने पुत्रों की समस्या पति कश्यप ऋषि को बताई। इसके बाद कश्यप ऋषि के कहने पर अदिति एक व्रत किया, जिसके शुभ फल से अदिति के गर्भ से भगवान विष्णु ने वामन देव के रूप में जन्म लिया। बलि अहंकारी था, उसे लगता था कि वह सबसे बड़ा दानी है। वामन देव राजा बलि के पास पहुंचे और दान में तीन पग धरती मांगी। अहंकारी बलि ने सोचा कि ये तो छोटा सी बात है। मेरा तो पूरी धरती पर अधिकार है, मैं इसे तीन पग भूमि दान में दे देता हूं। बलि तीन पग भूमि दान देने के लिए संकल्प कर रहे थे, उस समय शुक्राचार्य ने उसे रोकने की कोशिश की। शुक्राचार्य जान गए थे कि वामन के रूप में स्वयं भगवान विष्णु हैं। शुक्राचार्य ने बलि को समझाया कि ये छोटा बच्चा नहीं है, ये स्वयं विष्णु हैं, ये तुम्हें ठगने आए हैं। तुम इन्हें दान मत दो। ये बात सुनकर बलि बोला कि अगर ये भगवान हैं और मेरे द्वार पर दान मांगने आए हैं तो भी मैं इन्हें मना नहीं कर सकता हूं। बलि ने संकल्प करने के लिए हाथ में जल का कमंडल लिया तो शुक्राचार्य छोटा रूप धारण करके कमंडल की दंडी में जाकर बैठ गए, ताकि कमंडल से पानी ही बाहर न निकले और राजा बलि संकल्प न ले सके। वामन देव शुक्राचार्य की योजना समझ गए थे। उन्होंने तुरंत ही एक पतली लकड़ी ली और कमंडल की दंडी में डाल दी, जिससे अंदर बैठे शुक्राचार्य की एक आंख फूट गई और वे तुरंत ही कमंडल से बाहर आ गए। इसके बाद राजा बलि ने वामन देव को तीन पग भूमि दान करने का संकल्प ले लिया। राजा के संकल्प लेने के बाद वामन देव ने अपना आकार बड़ा कर एक पग में पृथ्वी और दूसरे पग में स्वर्ग नाप लिया। इसके बाद उन्होंने राजा से कहा कि अब मैं तीसरा पग कहां रखूं? ये सुनकर राजा बलि का अहंकार टूट गया। तब बलि ने कहा कि तीसरा पग आप मेरे सिर पर रख सकते हैं। वामन देव दूसरे पग में स्वर्ग नाप रहे थे, जब भगवान का पैर ब्रह्मलोक पहुंचा, तब ब्रह्मा जी ने भगवान के चरण पर अपने कमंडल का जल चढ़ाया था। इसके बाद भगवान के चरणामृत को ब्रह्मा जी ने अपने कमंडल में भर लिया। बाद में ब्रह्मा जी के कमंडल में भरा हुआ भगवान का यही चरणामृत गंगाजल के नाम से प्रसिद्ध हुआ। एक अन्य मान्यता... गंगा नदी की उत्पत्ति की एक अन्य कथा ये है कि पुराने समय में एक बार भगवान शिव ने विष्णु जी की स्तुति करते हुए सुंदर भजन गाया था, गाते समय शिव जी की आंखों से आंसु बहने लगे। शिव को गाते हुए सुनकर सभी देवता भी द्रवित हो गए थे, सभी की आंखों से आंसु बहने लगे। ऐसा माना जाता है कि सभी देवताओं के आंसु से ही गंगा नदी की उत्पत्ति हुई है। बाद में देवताओं के द्रवित होने से उत्पन्न हुई यही नदी स्वर्ग लोक में बहने लगी। कथा - धरती पर ऐसे आई गंगा नदी गंगा नदी के धरती पर अवतरण की कथा राजा सगर के 60 हजार पुत्रों और राजा भगीरथ से जुड़ी है। सगर अयोध्या के राजा थे, इनके 60 हजार पुत्र थे। जब सगर ने एक अश्वमेध यज्ञ किया तो यज्ञ का घोड़ा देवराज ने इंद्र ने चुरा लिया और पाताल में कपिल मुनि के आश्रम में छिपा दिया। सगर के 60 हजार पुत्रों ने घोड़ा खोजने के लिए पृथ्वी को खोदना शुरू कर दिया, पृथ्वी खोदते-खोदते वे पाताल में कपिल मुनि के आश्रम तक पहुंच गए। सगर के पुत्रों ने आश्रम में अपना घोड़ा देखा तो कपिल मुनि को घोड़े का चोर समझ लिया। उस समय कपिल मुनि तपस्या में बैठे हुए थे। राजा सगर के पुत्रों ने क्रोध में कपिल मुनि की तपस्या भंग कर दी, इससे क्रोधित होकर कपिल मुनि ने राजा सगर के सभी 60 हजार पुत्रों को भस्म कर दिया। जब राजा सगर के पुत्र लौटकर नहीं आए तो सगर ने पुत्रों की खोज के लिए अपने प्रपोत्र अंशुमान को भेजा। अंशुमान अपने वंशजों को खोजते हुए कपिल मुनि के आश्रम पहुंच गए, वहां उन्हें मालूम हुआ कि ऋषि सभी 60 हजार वंशजों को भस्म कर दिया है। अंशुमान ने अपने पूर्वजों का तर्पण करना चाहा, ताकि इन सभी की मुक्ति हो सके। उस समय गरुड़ देव ने अंशुमान को बताया कि आपके सभी पूर्वजों ने कपिल मुनि का अपमान किया था, इस वजह से ये भस्म हुए हैं, इनका उद्धार धरती के जल से नहीं होगा, इनके उद्धार के लिए आपको स्वर्ग से गंगा जल लेकर आना होगा। इसके बाद अंशुमान ने और फिर अंशुमान के पुत्र दिलीप में गंगा को धरती पर लाने के लिए घोर तप किया, लेकिन सफलता नहीं मिली। राजा दिलीप की मृत्यु के बाद भगीरथ राजा बने। भगीरथ के पूर्वजों का उद्धार नहीं हो पा रहा था। अपने पूर्वजों के

Jun 6, 2025 - 13:46
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गंगा दशहरा आज:भगवान विष्णु के चरणामृत से उत्पन्न हुई थीं देवनदी गंगा, पढ़िए गंगा की उत्पत्ति से धरती पर अवतरण तक की कथा
गुरुवार, 5 जून को गंगा दशहरा है। वराह पुराण के मुताबिक ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि पर हस्त नक्षत्र में स्वर्ग से गंगा नदी पृथ्वी पर अवतरित हुई थी। इसलिए इस तिथि को गंगा दशहरा कहते हैं। गंगा सभी पापों का नाश करने वाली नदी मानी गई है। पौराणिक मान्यता है कि राजा भागीरथ अपनी तपस्या के बल पर देवनदी गंगा को स्वर्ग से धरती पर ले आए थे। गंगा दशहरा पर जानिए गंगा नदी की उत्पत्ति और धरती पर अवतरित होने की कथा... लगभग 15-20 मिलियन साल से बह रही है गंगा हिमालय के गंगोत्री ग्लेशियर से गंगा निकली है। जियोलॉजिकल रिपोर्ट के अनुसार हिमालय पर्वतमाला लगभग 50 मिलियन वर्ष पहले बननी शुरू हुई, जब भारतीय टेक्टोनिक प्लेट यूरेशियन प्लेट से टकराई। इस टक्कर के कारण जमीन ऊपर उठने लगी और हिमालय पर्वत श्रृंखला का निर्माण हुआ। यह भूवैज्ञानिक प्रक्रिया आज भी जारी है, जिस कारण हिमालय की ऊंचाई हर साल कुछ मिलीमीटर बढ़ती है। गंगा नदी की शुरुआत लगभग 20-25 मिलियन वर्ष पहले मानी जाती है। हालांकि, गंगा नदी का लगातार धारा के रूप में बहना करीब 15-20 मिलियन वर्ष पहले शुरू हुआ। लगभग 2.5 लाख साल पहले गंगा की धारा स्थिर हुई और यह नदी के रूप में अपने मौजूदा रास्ते पर मैदानी इलाकों में बहने लगी। कथा - कैसे हुई गंगा की उत्पत्ति? गंगा की उत्पत्ति की एक कथा भगवान विष्णु के वामन अवतार से जुड़ी है। सतयुग में असुरों के राजा बलि ने देवताओं को पराजित कर दिया था और स्वर्ग पर कब्जा कर लिया था। इसके बाद दुखी देवता अपनी माता अदिति के पास पहुंचे और अपनी समस्या बताई। अदिति ने पुत्रों की समस्या पति कश्यप ऋषि को बताई। इसके बाद कश्यप ऋषि के कहने पर अदिति एक व्रत किया, जिसके शुभ फल से अदिति के गर्भ से भगवान विष्णु ने वामन देव के रूप में जन्म लिया। बलि अहंकारी था, उसे लगता था कि वह सबसे बड़ा दानी है। वामन देव राजा बलि के पास पहुंचे और दान में तीन पग धरती मांगी। अहंकारी बलि ने सोचा कि ये तो छोटा सी बात है। मेरा तो पूरी धरती पर अधिकार है, मैं इसे तीन पग भूमि दान में दे देता हूं। बलि तीन पग भूमि दान देने के लिए संकल्प कर रहे थे, उस समय शुक्राचार्य ने उसे रोकने की कोशिश की। शुक्राचार्य जान गए थे कि वामन के रूप में स्वयं भगवान विष्णु हैं। शुक्राचार्य ने बलि को समझाया कि ये छोटा बच्चा नहीं है, ये स्वयं विष्णु हैं, ये तुम्हें ठगने आए हैं। तुम इन्हें दान मत दो। ये बात सुनकर बलि बोला कि अगर ये भगवान हैं और मेरे द्वार पर दान मांगने आए हैं तो भी मैं इन्हें मना नहीं कर सकता हूं। बलि ने संकल्प करने के लिए हाथ में जल का कमंडल लिया तो शुक्राचार्य छोटा रूप धारण करके कमंडल की दंडी में जाकर बैठ गए, ताकि कमंडल से पानी ही बाहर न निकले और राजा बलि संकल्प न ले सके। वामन देव शुक्राचार्य की योजना समझ गए थे। उन्होंने तुरंत ही एक पतली लकड़ी ली और कमंडल की दंडी में डाल दी, जिससे अंदर बैठे शुक्राचार्य की एक आंख फूट गई और वे तुरंत ही कमंडल से बाहर आ गए। इसके बाद राजा बलि ने वामन देव को तीन पग भूमि दान करने का संकल्प ले लिया। राजा के संकल्प लेने के बाद वामन देव ने अपना आकार बड़ा कर एक पग में पृथ्वी और दूसरे पग में स्वर्ग नाप लिया। इसके बाद उन्होंने राजा से कहा कि अब मैं तीसरा पग कहां रखूं? ये सुनकर राजा बलि का अहंकार टूट गया। तब बलि ने कहा कि तीसरा पग आप मेरे सिर पर रख सकते हैं। वामन देव दूसरे पग में स्वर्ग नाप रहे थे, जब भगवान का पैर ब्रह्मलोक पहुंचा, तब ब्रह्मा जी ने भगवान के चरण पर अपने कमंडल का जल चढ़ाया था। इसके बाद भगवान के चरणामृत को ब्रह्मा जी ने अपने कमंडल में भर लिया। बाद में ब्रह्मा जी के कमंडल में भरा हुआ भगवान का यही चरणामृत गंगाजल के नाम से प्रसिद्ध हुआ। एक अन्य मान्यता... गंगा नदी की उत्पत्ति की एक अन्य कथा ये है कि पुराने समय में एक बार भगवान शिव ने विष्णु जी की स्तुति करते हुए सुंदर भजन गाया था, गाते समय शिव जी की आंखों से आंसु बहने लगे। शिव को गाते हुए सुनकर सभी देवता भी द्रवित हो गए थे, सभी की आंखों से आंसु बहने लगे। ऐसा माना जाता है कि सभी देवताओं के आंसु से ही गंगा नदी की उत्पत्ति हुई है। बाद में देवताओं के द्रवित होने से उत्पन्न हुई यही नदी स्वर्ग लोक में बहने लगी। कथा - धरती पर ऐसे आई गंगा नदी गंगा नदी के धरती पर अवतरण की कथा राजा सगर के 60 हजार पुत्रों और राजा भगीरथ से जुड़ी है। सगर अयोध्या के राजा थे, इनके 60 हजार पुत्र थे। जब सगर ने एक अश्वमेध यज्ञ किया तो यज्ञ का घोड़ा देवराज ने इंद्र ने चुरा लिया और पाताल में कपिल मुनि के आश्रम में छिपा दिया। सगर के 60 हजार पुत्रों ने घोड़ा खोजने के लिए पृथ्वी को खोदना शुरू कर दिया, पृथ्वी खोदते-खोदते वे पाताल में कपिल मुनि के आश्रम तक पहुंच गए। सगर के पुत्रों ने आश्रम में अपना घोड़ा देखा तो कपिल मुनि को घोड़े का चोर समझ लिया। उस समय कपिल मुनि तपस्या में बैठे हुए थे। राजा सगर के पुत्रों ने क्रोध में कपिल मुनि की तपस्या भंग कर दी, इससे क्रोधित होकर कपिल मुनि ने राजा सगर के सभी 60 हजार पुत्रों को भस्म कर दिया। जब राजा सगर के पुत्र लौटकर नहीं आए तो सगर ने पुत्रों की खोज के लिए अपने प्रपोत्र अंशुमान को भेजा। अंशुमान अपने वंशजों को खोजते हुए कपिल मुनि के आश्रम पहुंच गए, वहां उन्हें मालूम हुआ कि ऋषि सभी 60 हजार वंशजों को भस्म कर दिया है। अंशुमान ने अपने पूर्वजों का तर्पण करना चाहा, ताकि इन सभी की मुक्ति हो सके। उस समय गरुड़ देव ने अंशुमान को बताया कि आपके सभी पूर्वजों ने कपिल मुनि का अपमान किया था, इस वजह से ये भस्म हुए हैं, इनका उद्धार धरती के जल से नहीं होगा, इनके उद्धार के लिए आपको स्वर्ग से गंगा जल लेकर आना होगा। इसके बाद अंशुमान ने और फिर अंशुमान के पुत्र दिलीप में गंगा को धरती पर लाने के लिए घोर तप किया, लेकिन सफलता नहीं मिली। राजा दिलीप की मृत्यु के बाद भगीरथ राजा बने। भगीरथ के पूर्वजों का उद्धार नहीं हो पा रहा था। अपने पूर्वजों के उद्धार के लिए राजा भगीरथ ने देव नदी गंगा को धरती पर लाने के लिए कठोर तप किया था। भगीरथ ने सबसे पहले ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए तप किया। ब्रह्मा जी ने भगीरथ को गंगा नदी धरती पर ले जाने का वरदान दे दिया और कहा कि जब गंगा धरती पर उतरेगी तो उसके वेग को सहन करने और बांधने के लिए किसी महाशक्ति की आवश्यकता होगी। वर्ना गंगा धरती को भेदकर पाताल में चली जाएगी। गंगा की धारा को थामने की शक्ति सिर्फ शिव जी में है, इसलिए तुम शिव जी को भी प्रसन्न करो। ब्रह्मा जी के बाद भगीरथ शिव जी को प्रसन्न करने के लिए तप करने लगे। भगीरथ की तपस्या से शिव जी प्रसन्न हुए और उन्होंने भगीरथ को वरदान दिया कि जब गंगा स्वर्ग से उतरेंगी तो वे उसे अपनी जटाओं में स्थान देंगे। भगीरथ को लगा कि अब तो काम हो गया। गंगा के स्वर्ग से धरती पर उतरने में कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन उस समय गंगा धरती पर आना नहीं चाहती थीं। गंगा ने सोचा कि वे अपने वेग से शिव जी को भी बहाकर पाताल लोक ले जाऊंगी। गंगा को अपने वेग पर अहंकार हो गया था। जब ये बात शिव जी को मालूम हो गई। जब गंगा स्वर्ग से शिव जी की जटाओं में आईं तो शिव जी ने गंगा को जटाओं में ही रोक लिया। भगीरथ को पूरी बात मालूम हुई तो भगीरथ ने शिव जी को प्रसन्न करने के लिए फिर से तप किया। शिव जी प्रसन्न हुए और उन्होंने गंगा को सात धाराओं में बांट दिया। उन्हीं सात धाराओं में से एक गंगा बनकर भगीरथ के पीछे-पीछे चल दीं। भगीरथ का तप देखकर ही ब्रह्मा जी ने उन्हें वरदान दिया कि धरती पर गंगा का एक नाम भागीरथी भी होगा। भगीरथ की मेहनत से गंगा धरती पर आईं और भगीरथ के पूर्वजों का उद्धार हो गया। सोर्स श्रीमद्भागवत गीता, ब्रह्मवैवर्त पुराण, पद्मपुराण, रामायण

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