चिकित्सा मंत्री के गृह जिले नागौर में डॉक्टरों की कमी, ग्रामीणों की सेहत दांव पर
नागौर. जिले के सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों के 44 फीसदी पद रिक्त होने से चिकित्सा व्यवस्था चरमराई हुई है। इनमें विशेषज्ञों के पद तो 90 प्रतिशत तक खाली हैं, ऐसे में ग्रामीण क्षेत्र के मरीजों को छोटी-छोटी बीमारियों का उपचार कराने के लिए जिला मुख्यालय पर आना पड़ता है। इससे न केवल उन्हें शारीरिक और मानसिक रूप से परेशान होना पड़ता है, बल्कि आर्थिक भार भी झेलना पड़ता है। कहने को सरकार ने सरकारी अस्पतालों में भले ही सबकुछ नि:शुल्क कर दिया हो, लेकिन गांवों से जिला मुख्यालय तक आने वाले मरीजों को एक से दो हजार तक आर्थिक भार सहन करना पड़ता है। इसके साथ समय की बर्बादी होती है, सो अलग। वहीं दूसरी तरफ जिला मुख्यालय के जेएलएन अस्पताल में औसत आउटडोर 1200 से 1500 के बीच रहता है, जिसके कारण पर्ची काउंटर से लेकर डॉक्टरों के कक्ष के आगे, जांच केन्द्र पर एवं दवा की दुकानों पर मरीजों की लम्बी कतारें लगी रहती हैं। जिला अस्पताल में मरीजों का भार अधिक होने से डॉक्टर भी मरीजों को ज्यादा समय नहीं दे पाते हैं, ऐसे में कई मरीजों को निजी अस्पतालों में जाना पड़ता है।

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