सिवालखास मामले की दिल्ली तक गूंज, NHRC ने लिया संज्ञान:मामले को गंभीर मानते हुए यूपी के मुख्य सचिव और डीजीपी को नोटिस भेजा
मेरठ के सिवालखास में हुई तीन बच्चों की मौत के मामले की दिल्ली तक गूंज पहुंची है। इस घटना का राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने संज्ञान लिया है। आयोग ने इस प्रकरण को बच्चों के मानवाधिकारों का खुला उल्लंघन मानते हुए यूपी के मुख्य सचिव व डीजीपी को तलब किया है और पूरे मामले की विस्तृत रिपोर्ट दो सप्ताह के भीतर प्रस्तुत करने के निर्देश दिए हैं। एनएचआरसी के इस एक्शन के बाद खलबली मची है। शासन ने भी सिवालखास की घटना से जुड़ा पूर्ण विवरण मांग लिया है। यह है तीन बच्चों की मौत का मामला सिवालखास के रहने वाले तीन बच्चे मानवी (9), शिवांश (8) व रितिक (8) रविवार को संदिग्ध परिस्थितियों में लापता हो गए। तीनों को ग्रामीणों ने दर्जनभर गांव तक ढूंढा लेकिन कुछ पता नहीं चला। अगले दिन यानि सोमवार सुबह साढ़े छह बजे तीनों बच्चों के शव एक प्लॉट में तैरते मिले। पुलिस ने पोस्टमार्टम कराया। शुरुआती छानबीन में बच्चों की मौत का कारण पानी में डूबना बताया गया लेकिन जैसे ही पोस्टमार्टम रिपोर्ट आई, अफसरों की नींद उड़ गई। मानवी के गले की एक हड्डी में फ्रेक्चर था। इसके अलावा उसकी गर्दन, कान व छाती पर भी चोट के निशान मिले। सवाल खड़े हुए कि अगर डूबकर ही मौत हुई है तो मानवी को इतनी गंभीर चोट कैसे लगी। इसके बाद परिवार ने बच्चों की हत्या का आरोप लगा दिया। कई दिन बीतने के बाद भी पुलिस किसी नतीजे पर नहीं पहुंची और अफसरों ने भी पूरे मामले पर चुप्पी साध ली। एनएचआरसी की ओर से जारी हुआ नोटिस सिवालखास की वारदात चर्चा में है। दैनिक भास्कर ने भी उनकी आवाज को उठाने का काम किया है। अब राष्ट्रीय मानाधिकार आयोग ने इसका संज्ञान लिया है। आयोग ने टिप्पणी की है कि सिवालखास की घटना बच्चों के मानवाधिकारों का खुला उल्लंघन है। डीजीपी-मुख्य सचिव रिपोर्ट संग तलब सिवालखास की घटना हत्या है या हादसा, भले ही मेरठ पुलिस इसको लेकर किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पा रही हो लेकिन एनएचआरसी ने इसे गंभीरता से लिया है। उन्होंने उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव व डीजीपी को संयुक्त रूप से एक नोटिस जारी करते हुए दो सप्ताह के भीतर विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा है। जांच-मुआवजे से जुड़ी भी मांगी जानकारी दो सप्ताह के भीतर शासन को जो रिपोर्ट तैयार कर भेजनी है, उसमें जांच की स्थिति पर तो जवाब देना ही है, साथ ही परिजनों को दी गई सरकारी सहायता अथवा मुआवजे का विवरण भी मांगा गया है। शासन से पत्राचार शुरु कर दिया गया है। हाईकमान से फरमान जारी होने के बाद अफसरों में खलबली मची है। वह इस मामले पर किसी भी तरह की टिप्पणी से बच रहे हैं।

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