अयोध्या में छह महीने पुराना ओवरब्रिज धंसा:सहादतगंज बाईपास पर बाउंड्री वॉल में आई दरारें, गुणवत्ता पर उठ रहे सवाल
अयोध्या में विकास कार्यों के बीच सहादतगंज बाईपास के पास बना नया ओवरब्रिज धंसने से स्थानीय लोगों में हैरानी और नाराजगी है। अयोध्या-लखनऊ हाईवे पर स्थित यह ओवरब्रिज, सांसद अवधेश प्रसाद के घर से थोड़ा आगे और आरकेबीके पेट्रोल पंप के सामने बनाया गया था। करीब छह माह पहले ही इसका लोकार्पण हुआ था, लेकिन भारी बरसात के बीच इसका एक हिस्सा बीच से धंस गया और बाउंड्री वॉल में भी बड़ी दरारें आ गईं। अयोध्या-लखनऊ हाईवे पर सहादतगंज बाईपास तिराहे पर 150 करोड़ रुपए की लागत से बना है। मार्ग धंसने के बाद यातायात रोकना पड़ा। छह माह पहले बने ओवरब्रिज धंसने से इसकी गुणवत्ता पर सवाल खड़ा हो गया। इसकी बाउंड्री पर भी दरारें साफ दिखाई दे रही हैं। शुक्रवार सुबह (एनएचएआई) भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण की स्थानीय इकाई को पुल की सड़क धंसने की जानकारी हुई। बरसात के मौसम में हुए इस हादसे ने निर्माण की गुणवत्ता और निगरानी व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि इतनी कम अवधि में किसी बड़े ढांचे का धंसना गंभीर लापरवाही का संकेत है। उनका आरोप है कि निर्माण के दौरान घटिया सामग्री और तकनीक का इस्तेमाल किया गया होगा, तभी बरसात के कुछ दिनों में ही इसकी स्थिति इतनी खराब हो गई। एनएचएआई के इंजीनियर योगेंद्र कुमार ने बताया कि पानी के जमाव (वॉटर लागिंग) के कारण यह समस्या हुई है। लगातार बारिश से हाईवे के किनारों और पुल के बीच पानी भर गया, जिससे मिट्टी धंसक गई और सड़क की सतह नीचे बैठ गई। उन्होंने कहा कि ओवरब्रिज की मरम्मत तुरंत शुरू कर दी गई है और अगले दो दिनों में यातायात बहाल कर दिया जाएगा। वहीं, एनएचएआई के जूनियर इंजीनियर उपेंद्र सिंह का भी कहना है कि तकनीकी जांच के बाद पाया गया कि पानी की निकासी का पर्याप्त प्रबंध न होने से यह स्थिति बनी। अब सुधार कार्य के साथ-साथ ड्रेनेज सिस्टम को भी दुरुस्त किया जाएगा ताकि भविष्य में ऐसा न हो। घटना के बाद हाईवे के इस हिस्से पर यातायात आंशिक रूप से रोक दिया गया है। फिलहाल छोटे वाहनों को वैकल्पिक मार्ग से गुजारा जा रहा है, जबकि भारी वाहनों को पहले से लागू डायवर्जन के तहत अन्य मार्गों पर भेजा जा रहा है। यह ओवरब्रिज अयोध्या-लखनऊ हाईवे पर ट्रैफिक दबाव को कम करने के उद्देश्य से बनाया गया था। इसके निर्माण पर लाखों रुपये खर्च हुए थे और उद्घाटन के समय इसे शहर के विकास की अहम उपलब्धि के रूप में पेश किया गया था। लेकिन केवल आधे साल में ही इसका धंस जाना न केवल तकनीकी चूक का उदाहरण है बल्कि जिम्मेदार एजेंसियों की कार्यप्रणाली पर भी सवाल खड़े करता है। स्थानीय लोग अब मांग कर रहे हैं कि इस मामले की उच्चस्तरीय जांच हो, ताकि भविष्य में इस तरह की लापरवाही दोबारा न हो और जनता के पैसों से बनने वाले ढांचे टिकाऊ और सुरक्षित हों।

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