वाराणसी में पगडंडी पर चल रही नाव, फसलें बर्बाद:किसान बोले-महीनों मेहनत की, सब उजड़ा, सरकार सिर्फ जमीन मालिक को देगी पैसे
'खेती को हम लोग अपने बच्चे की तरह तैयार करते हैं। लेकिन, बाढ़ के कारण सब चौपट हो गया। किसके दरवाजे पर जाकर अपना दुख कहें सरकार मुआवजा उन्हीं को देती है, जिनका जमीन है। हम लोग तो दूसरे के जमीन पर खेती करके अपना गुजर बसर करते हैं। कुछ समझ में नहीं आ रहा, हम क्या करें। इस बाढ़ ने 2016 की याद दिला दी।' यह कहना है कि रमना गांव के किसानों का। बनारस में गंगा-वरुणा उफान पर है, जिसकी वजह से 50 हजार परिवार परेशान हो गया है। बाढ़ की स्थिति को जानने के लिए दैनिक भास्कर की टीम शहर से 7 किलोमीटर दूर रमना, टिकरी, नौरतमपूर,सरायडगरी,नाटी इमली गांव में पहुंची। यह हमने जाना कि गांव की कौन-कौन सी फसल पानी में डूबी? कितने किसानों को नुकसान हुआ? यहां की फसल कहां-कहां जाती है? गांव के कितने घर डूबे हैं? पढ़िए पूरी रिपोर्ट... बाढ़ के कारण 500 घरों में पानी घुसा सबसे पहले हम वाराणसी के रमना गांव में पहुंचे। जहां पर किसान पेड़ में रस्सी बांध रहे थे, जिससे वह नाव को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पार कर सके। गांव में दो नाव चल रही थी, बाढ़ के कारण 500 घरों में पानी घुस गया था। परिवार के लोग रिश्तेदारी में गए हैं। बड़े गार्जियन घर रख रहे हैं। गांव के चारों तरफ सब्जियों की खेती होती है। जो बिहार बंगाल राजस्थान सहित विदेशी तक भेजी जाती है। गांव के लोगों के चेहरे पर मायूसी थी सभी ने कहा कि सरकार से डिमांड की गई थी। बांध बनवाने का चुनाव के समय वादा किया गया। लेकिन, अभी तक बजट नहीं पास हुआ। कुछ गांव के लोगों ने कहा कि जनप्रतिनिधि आश्वासन देकर चले जाते हैं। जब बाढ़ आता है, तो हमारे दुख को पूछने कोई नहीं आता। अब पढ़िए किसानों की बातचीत अब बच्चों का खर्च कैसे चलेगा गांव में नाव का इंतजार कर रहे बबलू पटेल पर हमारी नजर पड़ी वह बड़े ध्यान से हमें देख रहे थे जब हमने उनसे पूछा कि आपके चेहरे पर काफी मायूसी तो उनके आंख में आंसू आ गया उन्होंने कहा कि हम सेम की खेती करते हैं। लेकिन गंगा का जलस्तर बढ़ने के कारण सब चौपट हो गया। उन्होंने बताया दो बीघा में हमने खेती की थी लेकिन वह खेत हमने किसी और से लिया था। हमने पूछा कि अब अपनी सूखेगा तो खेती कब होगी तो उन्होंने कहा कि 2 से 3 माह का वक्त लगेगा। उन्होंने कहा कि हमें चिंता यह है कि सरकार मुआवजा जिसका खेत होता है उसे देती है। लेकिन, उसे खेत को लेकर जो खेती करते हैं उन्हें कुछ नहीं मिलता है अब घर कैसे चलेगा बच्चों की चिंता हो रही है। अब हाय-हाय करने से नहीं दूर होगा हमारा दुःख गांव के बुजुर्ग रामधीर ने कहा-गांव की स्थिति बहुत दुखद है सोचने लायक नहीं है। गांव में नेनुआ, लौकी ,कद्दू, बैगन,मिर्च,सेम, करौला, भिंडी सीजन की जितनी भी सब्जी है। सब डूब गई। यहां की सब्जी बंगाल, बिहार कुछ से दुबई भी जाता है। इस गांव में बड़े व्यापारी आते हैं खेत पर बोली लगती है। और वह हमारी सब्जियों को लेकर जाते हैं। अब हमारे भोजन का आधार हमसे दूर हो गया। अब आधा पेट खाएं या पूरा पेट खाएं हमारे दुख को पूछने कौन आएगा। 1 साल पीछे हुआ सब्जियों की खेती दिनेश कुमार पटेल ने कहा-2 दिन पहले हमारे गांव में पानी घुस गया। गांव का हर किसान गंगा के बाढ़ के कारण प्रभावित हो गया है। हमारे गांव में लौकी, कद्दू ,बैगन, सीन आदि सीजन सब्जी पैदा की जाती है। पूरे गांव में लगभग 1500 एकड़ का फसल पानी में समा गया है। अब बढ़ हटेगा तब नया खेती होगा इसमें दो माह का वक्त पानी को सूखने में लगेगा। फिर एक से दो माह में अपना खेत सही करने में कुल 6 महीना लेट हमारी खेती हो गई है। फिर फसल पैदा होने में 5 से 6 माह का वक्त लगता है अब 1 साल पीछे हमारी खेती हो गई है। 10 की पढ़ाई कर रहा शंभू वर्मा ने बताया-हमारे पिताजी किसानी करते हैं हम भी उनके साथ खेती करते हैं उन्होंने बताया कि अभी हमने दसवीं की पढ़ाई कर रहे है। खेती से ही हमारा घर चलता है। लेकिन, हमारा पूरा खेल डूब गया अब हमें समझ में नहीं आ रहा है कि हमारा घर कैसे चलेगा उन्होंने बताया कि बाढ़ के कारण अब वह स्कूल भी नहीं जा पा रहे हैं क्योंकि उनके घर में पानी घुस गया है। उन्होंने बताया कि हम बड़े होकर वैज्ञानिक बनना चाह रहे थे लेकिन अब हमारी पढ़ाई संकट में है। 5 साल से गांव में खेली करके घर चला रहे प्रेमशिला ने बताया-हम सभी इस गांव में रहकर खेती करते हैं। दो बिस्तर खेत में बोडा, लौकी ,नेनुआ और सेम की खेती करके बनारस के ही मंडी में उसको बेचकर अपना घर चलाते थे। जब हमारी फसल तैयार हो जाती है, तो प्रतिदिन उसे तोड़कर हम मंडी ले जाते हैं। जो पैसा मिलता है उससे घर चलता है। 5 साल से इस गांव में रहकर खेती कर रहे हैं। लेकिन, अब हमारा फसल पूरी तरह से डूब गया है। हम एक मांग करते हैं। इस गांव के चारों तरफ जो बंद हैं। उसे और ऊंचा कर दिया जाए, जिससे इस गांव में पानी ना घूसे। हमारे गांव में अभी सरकार कोई सुविधा नहीं दी है सिर्फ दो नाव चलाया जा रहा है। चंद किलो राशन से नहीं चलेगी जिंदगी गांव में किसानी करने वाले अशोक कुमार ने बताया-रमना गांव पूरी तरह से किसानी पर निर्भर है। हर तीसरे साल आने वाली बाढ़ की वजह से हम किसानों की फसलें बर्बाद हो जाती है। कुछ ऐसा ही दर्द गांव के दूसरे किसानों का भी हैं। प्रशासन की ओर से मदद तो मिली गई लेकिन चंद किलो राशन से हमारी जिंदगी नहीं चल सकती। किसानों को सब्जियां उगाने में कम लागत नहीं आती है। उसकी देखरेख में इतना पैसा लग जाता है कि लागत निकालना मुश्किल हो जाता है। सभी सब्जियां बाढ़ के पानी में डूब गई हैं। सेम, करेला, नेनुआ, भिंडी की खेती की थी। 20 हजार रुपए का बांस लेकर आए, 5 हजार रुपए का पुआल लगा, सब बेकार हो गया। बांध न बनने के कारण सारा पानी खेत खराब कर देता है। हमें इसका मुआवजा मिलना चाहिए। फसल तैयार है, लेकिन अब सब खराब हो जाएगा सुरेश कुमार पटेल ने बताया-हम सब्जियों की खेती करते हैं। बचपन से ही इस गांव में खेती से जुड़ा रहा पढ़ाई लिखाई भी नहीं की है। इस बार ने हमें 2016 का याद दिला दिया गांव में गले तक प

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