हर समाज की अपनी परंपराएं:भाई, तुलसी, औजार व व्यापार... लुधियाना में सबको बांधी जाती है राखी
भास्कर न्यूज | लुधियाना रक्षाबंधन सिर्फ भाई-बहन का पर्व नहीं, बल्कि आस्था, परंपरा और सांस्कृतिक विविधता का उत्सव बन चुका है। सावन की पूर्णिमा पर मनाया जाने वाला यह त्योहार लुधियाना जैसे बहु-समाजिक शहर में हर समाज की अपनी खास परंपराओं के साथ मनाया जाता है। हिंदू परिवारों में बहनें भाइयों को राखी बांधती हैं। मारवाड़ी समाज में बहनें भाई के साथ-साथ तुलसी और घर के मुख्य दरवाजे को भी राखी बांधती हैं। जैन समाज में बहनें साधु-संतों को राखी बांधकर आशीर्वाद लेती हैं। दक्षिण भारतीय परिवारों में भगवान की मूर्तियों को रक्षा-सूत्र बांधने की परंपरा है। कई समाजों में औजारों, पेड़ों, किताबों, गाड़ियों और व्यापारिक गल्लों तक को राखी बांधने की परंपरा है। यह त्योहार लुधियाना की बहुसांस्कृतिक पहचान का प्रतीक बन चुका है। हर समाज इसे अपनी मान्यताओं और श्रद्धा के अनुसार मनाता है। राखी सिर्फ एक रस्म नहीं रही, यह अब जीवन के हर हिस्से को जोड़ने का पर्व बन गया है। इस दिन बहनें केवल भाइयों की लंबी उम्र की कामना नहीं करतीं, बल्कि पूरे घर, धर्म, प्रकृति और व्यवसाय की सुरक्षा के लिए भी राखी बांधती हैं। रक्षाबंधन अब रिश्तों से आगे बढ़कर विश्वास और संस्कृति की डोर में सबको जोड़ने वाला पर्व बन चुका है। अग्रवाल समाज अग्रवाल समाज इस दिन दीवार पर गोबर और चूना मिट्टी से श्रवण कुमार की आकृति बनाकर पूजा करते हैं। श्रवण कुमार की सेवा भावना को प्रतीक मानकर इस दिन परिवार में सेवा और स्नेह की भावना को बढ़ावा दिया जाता है। पूजा के बाद भाई-बहन रक्षासूत्र बांधने की परंपरा निभाते हैं। {गढ़वाली समाज: गढ़वाली समाज में रक्षाबंधन का पर्व श्रावणी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन का विशेष महत्व जनेऊ संस्कार से जुड़ा होता है। प्रातः काल मंदिरों या तालाबों के किनारे वेदपाठी ब्राह्मण पंचगव्य और दशविधि स्नान के साथ आत्मशुद्धि करते हैं। इसके बाद ऋषियों का पूजन कर नया जनेऊ धारण किया जाता है। इस प्रक्रिया को श्रावणी उपाकर्म कहा जाता है। साथ ही, समाज के सदस्य इस दिन प्रायश्चित संकल्प भी करते हैं। {अग्रवाल समाज: अग्रवाल समाज कहीं महाराजा अग्रसेन तो कुछ परिवारों में नाग देवता के चित्र पर पहले राखी अर्पित कर अपने संस्थानों में तिजोरी व अन्य उपकरणों पर भी राखी चढ़ाते हैं। स्वर्णकार समाज: स्वर्णकार समाज की रक्षाबंधन की परंपरा बेहद अनूठी है। यहां भगवान गणेश और श्रीकृष्ण को राखी अर्पित की जाती है। इसके बाद आभूषण निर्माण में काम आने वाले उपकरण जैसे छैनी, हथौड़ी, तौल-कांटा आदि को भी राखी बांधकर उनका सम्मान किया जाता है। यह परंपरा औजारों के प्रति कृतज्ञता का प्रतीक है, जिनसे रोजी-रोटी चलती है। {मारवाड़ी समाज: मारवाड़ी समाज में रक्षाबंधन का उत्सव गोगा नवमी तक चलता है। यह नौ दिवसीय पर्व भाई-बहन के रिश्ते के साथ-साथ धार्मिक आस्था का भी प्रतीक होता है। समाज के लोग गोगाजी की पूजा करते हैं और उनके प्रतीक रूप में राखी अर्पित करते हैं। चौरसिया समाज: चौरसिया समाज में यह पर्व नागदेव की पूजा से शुरू होता है। पहले नागदेव के चित्र पर राखी अर्पित की जाती है और फिर पर्व की बाकी रस्में निभाई जाती हैं। यह समाज सर्प देवता को संरक्षण का प्रतीक मानता है और उसी भावना से रक्षा सूत्र बांधता है। कायस्थ समाज: कायस्थ समाज में भगवान चित्रगुप्त को राखी अर्पित की जाती है। कई लोग अपने कुल देवता के नाम से पेड़ों पर भी राखी बांधते हैं। यह परंपरा पेड़ों को जीवनदायी तत्व मानने की सोच से जुड़ी हुई है, जिसमें प्रकृति के प्रति कृतज्ञता दिखाई देती है। इस दिन लोगों के घरों में चूल्हे पर तवा नहीं चढ़ता है। विश्वकर्मा समाज: विश्वकर्मा समाज की परंपरा इस पर्व को सुरक्षा और समृद्धि से जोड़ती है। हरियाली तीज से लेकर रक्षाबंधन के बीच वे घर की चौखट में एक छोटी कील ठोकते हैं। मान्यता है कि इससे बुरी नजर या नकारात्मक शक्तियों से घर की रक्षा होती है। ब्राह्मण समाज इस समाज में श्रावणी पर्व का खास महत्व है। इस दिन सुबह तालाबों के घाटों अथवा मंदिर परिसर में श्रावणी उपाकर्म में नया जनेऊ धारण करते हैं। इसके पूर्व आत्म शुद्धि के लिए पंचगव्य आदि से दशविधि स्नान व ऋषि पूजन किया जाता है। बाद में प्रायश्चित संकल्प भी करते हैं।

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