श्रीमद् भगवद गीता से सीखें सही निर्णय कैसे लें:कठिनाई से भागने से समाधान नहीं मिलता, सुविधा को चुनना समझदारी नहीं, डर का दूसरा नाम है
16 अगस्त को भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मनाया जाएगा। श्रीकृष्ण ने महाभारत युद्ध से पहले संदेह में उलझे हुए अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था। गीता में बताई गई बातों को अपनाने से हम सभी परेशानियों से मुक्त हो सकते हैं। गीता कहती है कि हमारा जीवन हमारे चुनावों से, हमारे निर्णयों से तय होता है। जैसा हम चुनाव करते हैं, वैसा ही हमारा जीवन बनता जाता है। हमारे निर्णय जीवन की दिशा तय करते हैं, कहीं रुकें या चलें, लड़ें या हार मान लें, भीड़ के साथ चलें या अपनी राह खुद बनाएं, हम जैसे निर्णय लेते हैं, वे ही हमारा जीवन बनाते हैं। इसलिए निर्णय लेने की क्षमता विकसित करनी चाहिए, ताकि मुश्किल समय में भी हम सही निर्णय ले सकें। सही निर्णय लेना अक्सर आसान नहीं होता हमेशा सही करो, न कि आसान। जब अर्जुन कुरुक्षेत्र के मैदान में खड़े थे, एक ओर थे उनके अपने लोग, उनका परिवार और दूसरी ओर था उनका धर्म, उनका कर्तव्य। अर्जुन की तरह हम सब कभी न कभी ऐसे मोड़ पर खड़े होते हैं, जहां हमें तय करना होता है, क्या हम सही करेंगे, भले ही वो कठिन हो या हम वही करेंगे जो आसान लगे? भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा था कि- कठिनाई से भागने से समाधान नहीं मिलता। सुविधा को चुनना समझदारी नहीं है, बल्कि ये डर का दूसरा नाम है। हममें से कई लोग ऐसे रिश्तों में टिके रहते हैं, जो हमें भीतर से तोड़ रहे होते हैं, सिर्फ इसलिए क्योंकि उन रिश्तों को छोड़ना मुश्किल लगता है। हम ऐसी नौकरियों में फंसे रहते हैं जो हमें मानसिक रूप से हमें खत्म कर रही होती हैं, क्योंकि नई शुरुआत करना डरावना होता है। ऐसी स्थितियों के लिए गीता कहती है कि - जो सही है, वही करो, भले ही वो कठिन हो, जो आसान है, वह हमेशा सही नहीं होता। भावनाओं पर नहीं, निर्णय पर ध्यान दें भावनाओं में न उलझें, उनके आधार पर कोई निर्णय न लें, क्योंकि भावनाएं तो क्षणिक होती हैं, लेकिन निर्णय स्थायी होते हैं। अर्जुन का मन भावनाओं से उलझ गया था, प्यार, मोह, दुःख, भ्रम। इन भावनाओं के आधार पर अर्जुन ने अपने निर्णय रोक दिए थे। श्रीकृष्ण ने कहा कि- अपने कर्तव्य का पालन करो, चाहे मन कितना भी विचलित क्यों न हो। इसका अर्थ ये नहीं कि भावनाएं बुरी हैं। भावनाएं हमें इंसान बनाती हैं, लेकिन निर्णय लेते समय भावनाएं हम पर नियंत्रण कर लेती हैं तो हम अक्सर गलत रास्ता चुन बैठते हैं। आप प्रेम में हों, गुस्से में हों या डर में, उस पल लिया गया निर्णय आपके पूरे भविष्य को प्रभावित कर सकता है। तो क्या करें? रोकें। सोचें। खुद से पूछें: अगर मैं डर, गुस्सा या पछतावे को हटा दूं तो मेरे सामने क्या बचता है? कौन-सा रास्ता सच में सही है? परिणाम नहीं, प्रयास पर ध्यान दें हम कर्म के अधिकारी हैं, फल के नहीं। शायद भगवद गीता की सबसे प्रसिद्ध और सटीक सीख यही है: कर्म करो, फल की चिंता मत करो। आप जी-जान से पढ़ाई कर सकते हैं, लेकिन प्रश्नपत्र कैसा आएगा, ये आपके हाथ में नहीं। आप सच्चे दिल से किसी से प्रेम कर सकते हैं, लेकिन वे आपको वैसे ही प्रेम करेंगे या नहीं, ये आप तय नहीं कर सकते। फिर भी हम में से ज्यादातर लोग जब तक पूरी गारंटी न मिले, तब तक कोई निर्णय नहीं लेते। हम सोचते हैं कि क्या मैं फेल हो जाऊंगा? क्या अगर मैंने गलती कर ली? गीता कहती है कि सही करो, चाहे फल मिले या नहीं। जीवन में सबसे बड़ी शांति तब आती है, जब हम जानते हैं कि हमने अपना सर्वश्रेष्ठ किया, भले ही परिणाम कुछ भी हो। जो निर्णय लेते हैं, वे ही हमें आगे बढ़ते हैं। हम सब चाहते हैं कि कोई आए और हमें बता दे कि यही रास्ता लो, यही सही है, लेकिन जिंदगी ऐसे नहीं चलती, कोई गारंटी नहीं देता। क्या होगा, अगर रास्ता गलत निकला? तो आप सीखेंगे। क्या होगा अगर मैं गिर गया? तो आप फिर उठेंगे। असफलता भी एक शिक्षक होती है। हर गलती आपको अगले निर्णय के लिए मजबूत बनाती है, कमजोर नहीं। सबसे बड़ा खतरा ये नहीं कि हम गलत निर्णय ले लेंगे, बल्कि ये है कि हम कोई निर्णय ही न लें। हिचकिचाहट आपको वहीं रोक देती है। निर्णय आपको आगे बढ़ाता है, चाहे धीमे ही सही। गीता हमें सिखाती है कि निर्णय लो। साहस के साथ चलो और बाकी परमात्मा पर छोड़ दो। आप जो भी चुनें, अपने विवेक, अपने कर्तव्य और अपने आत्मबल के साथ चुनें। जीवन ठहरने का नाम नहीं है। यह आगे बढ़ने का नाम है।

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