‘सरकार बस दो टाइम दाल-चावल दे रही’:काशी में बाढ़ पीड़ित बोले- बच्चे दूध-केला के लिए रो रहे, खुद टेंट लगाकर 150 लोग रुके

घर में पानी घुस गया है, किसी तरह यहां रह रहे हैं। सरकार सुबह और शाम बस दाल-चावल पहुंचा देती है। एक ही टेंट के नीचे 4 से 5 लोग सोते हैं। बाढ़ के कारण स्कूल बंद हो गया है। पढ़ने नहीं जा रहे हैं। हमारी मांग इतनी है कि हम लोगों के लिए शौचालय और नहाने की व्यवस्था ठीक कर दी जाए। ये कहना है कि वाराणसी में वरुणा क्षेत्र स्थित ढेलवरिया की रहने वाली लक्ष्मी का, जो इन दिनों बाढ़ पीड़ित कैंप में रह ही हैं। अपनी बड़ी बहन के कपड़ा सिलाई में मदद कर रही थीं। बाढ़ के कारण यहां के 30 हजार से अधिक परिवार परेशान हैं। सभी के लिए प्रशासन ने रहने की उचित व्यवस्था की है। लेकिन, एक क्षेत्र ऐसा भी है, जहां पर करीब 150 लोग खुद ही टेंट लगाकर रहने के लिए मजबूर हैं। कैंप के बगल में एक प्राइमरी स्कूल है, वह भी पूरी तरह से भरा है। एक स्वास्थ्य कैंप लगाया गया है। दैनिक भास्कर की टीम ने इस कैंप में रहकर इन सभी पीड़ितों से बातचीत की। लोगों ने कहा- सरकार दाल-चावल के अलावा और चीजें भी खाने को भेजे। बच्चे दूध और केला के लिए रो रहे हैं। पढ़िए पूरी रिपोर्ट… बच्चे बोले- मच्छर बहुत काट रहे हैं 10 फीट चौड़ी गली में लगभग 1 किलोमीटर अंदर जाने पर हम ढेलवरिया इलाके में स्थित बड़ी मंदिर के पास पहुंचे। हालांकि, मंदिर में भी पानी पहुंच गया है। उसके कुछ ही दूर पर एक खाली मैदान में 50 से अधिक टेंट लगे हैं, इसमें 150 लोग रह रहे हैं। यहां प्रशासन लोगों को खाना पहुंचा रही है। हमारे पहुंचने पर वहां कुछ बच्चे खाना खाते हुए दिखे। बच्चों की थाली में दाल और चावल था। वह बड़े ही चाव से उसे खा रहे थे। हमने उनसे पूछा कि आप कहां रह रहे हैं तो उन्होंने कहा कि हमारा घर डूब गया है। इसलिए हम लोग यहां रह रहे हैं। उन्होंने बताया कि बाढ़ के कारण स्कूल भी नहीं जा पा रहे हैं। बिजली भी नहीं है। मच्छर बहुत काट रहे हैं। लोग बोले- विधायक एक भी दिन मिलने नहीं आए थोड़ा आगे बढ़ने पर इस पूरे शिविर की महिला और पुरुष आपस में बातचीत कर रहे थे। उनका कहना था कि सभी राहत कैंप में बढ़िया भोजन और राहत सामग्री बांटी जा रही है। लेकिन, हमारे कैंप में कोई नहीं आ रहा है। क्योंकि हमारा इलाका शहर से काफी अंदर गली में है। हमारी टीम उनके बीच पहुंची और पूछा कि आपसे मिलने कोई नेता आए? जवाब मिला- हमारे विधायक रविंद्र जायसवाल हैं जो एक भी दिन हम लोगों से मिलने नहीं पहुंचे। लोगों की बातचीत हम कहीं जा नहीं पा रहे मुन्ना ने कहा- हम रोज सब्जी बेचने के लिए गली मोहल्ले में जाते हैं, लेकिन बाढ़ आ गई है। इसलिए कहीं नहीं जा पा रहे हैं। राहत के नाम पर कुछ नहीं मिल रहा है। बस सुबह शाम दाल और चावल दिया जा रहा है। सुबह नाश्ते में चना आ जाता है। घर डूबा तो उसमें हमारा पूरा सामान डूब गया है। अब लगभग 15 दिन से 1 महीने तक जब तक बढ़ नहीं खत्म होगी, हम लोग यहीं पर रहेंगे। हम लोग टेंट में खाना भी बनाते हैं। 1 माह में दूसरी बार घर छोड़ना पड़ा पप्पू वर्मा ने कहा- इस पूरे इलाके में सबसे किनारे मेरा घर है, जो सबसे पहले डूब जाता है। मेरे घर में पांच सदस्य हैं। जब बाढ़ आती है तो हम लोग बांस की व्यवस्था करते हैं। फिर एक टेंट बनाते हैं। सभी लोग यहीं पर रहते हैं। एक तरह से यहीं हम लोगों का मोहल्ला बन गया है। इससे पहले जब बाढ़ आई थी तो 5-6 दिन में हम लोग वापस घर चले गए थे। लेकिन, जब दूसरी बार गंगा का जलस्तर बाद तो पिछले 5 दिनों से हम लोग यहां अपना टेंट लगाकर रह रहे हैं। सुबह 10 बजे और शाम को 7.30 बजे खाना आता है। हम लोगों को रात में जागना भी पड़ता है, क्योंकि आवारा पशु यहां घुस जाते हैं। इसको लेकर हमने बहुत बार शिकायत भी की। छोटे बच्चे हैं, उनको भी खतरा है। पत्नी दिव्यांग है, दुकान बंद कर दिन काट रहे सुरेश रघुवंशी ने कहा- हम इडली की दुकान लगाते हैं, लेकिन इस समय दुकान बंद है मेरी पत्नी दिव्यांग है और उसका तबीयत खराब रहता है दवा खरीदने के पैसे नहीं है अब किसी तरह से बाढ़ में समय काट रहे हैं बाढ़ खत्म होगा तो फिर अपनी दुकान लगाएंगे। सारा सामान डूब गया है। बाढ़ में हमारे बच्चे घर का काम करने गए हैं वह जो पैसा लाते हैं उसी से समय काटकर अपना घर चलते हैं। खाना तो मिल रहा है, लेकिन छोटे बच्चे दूध और केला के लिए रो रहे हैं। एक ही शौचालय था, जहां पर काफी भीड़ होती थी। लेकिन, हम लोगों ने शिकायत की तो यहां के पार्षद एक शौचालय और बनवा रहे हैं। 2013 का टूटा रिकार्ड, घर में रहने के लिए दिया मुफ्त कमरा बाढ़ वाले इलाके से थोड़े दूर पर रहने वाले मुकेश का तीन मंजिला मकान है। उन्होंने बताया-4 से 5 परिवार को वह अ​​​​​पने घर में निशुल्क रखें इसके अलावा वह अपने ही घर से लाइट भी दे रखी है, जिससे लोग फोन चार्ज कर सके। पार्षद की मदद से यहां शौचालय भी बनवाया जा रहा है, जिससे इन परिवारों को थोड़ी राहत मिल सके। यह सभी सफाई करते हैं, कोई दुकान लगता है तो कोई घर-घर जाकर काम करता है। लेकिन, सबका रोजगार छिन गया है। इससे पहले 2016 2013 और 2002 में बाढ़ आया था। उसके बाद इस तरह की बाढ़ हमने देखी है। गंगा का जलस्तर रुका है। हम यही मानते हैं कि बाढ़ आगे ना आए। नहीं तो हमारा भी घर डूब जाएगा और 1978 का रिकॉर्ड भी टूट जाएगा। पीड़ितों की 5 डिमांड ------------------------- ये खबर भी पढ़िए- सीतापुर पत्रकार हत्याकांड के 2 शूटर एनकाउंटर में ढेर: सरेंडर करने को कहा तो बरसाई गोलियां; बाबा ने सुपारी देकर कराई थी हत्या सीतापुर में पत्रकार राघवेंद्र बाजपेयी हत्याकांड के दो शूटरों को पुलिस ने मुठभेड़ में मार गिराया है। आज सुबह पुलिस को शूटरों की मूवमेंट की सूचना मिली थी। टीम ने शूटरों की घेराबंदी की। सरेंडर करने के लिए कहा गया, लेकिन उन्होंने फायरिंग कर दी। जवाबी फायरिंग में दोनों मारे गए। पूरी खबर पढ़िए

Aug 7, 2025 - 11:14
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‘सरकार बस दो टाइम दाल-चावल दे रही’:काशी में बाढ़ पीड़ित बोले- बच्चे दूध-केला के लिए रो रहे, खुद टेंट लगाकर 150 लोग रुके
घर में पानी घुस गया है, किसी तरह यहां रह रहे हैं। सरकार सुबह और शाम बस दाल-चावल पहुंचा देती है। एक ही टेंट के नीचे 4 से 5 लोग सोते हैं। बाढ़ के कारण स्कूल बंद हो गया है। पढ़ने नहीं जा रहे हैं। हमारी मांग इतनी है कि हम लोगों के लिए शौचालय और नहाने की व्यवस्था ठीक कर दी जाए। ये कहना है कि वाराणसी में वरुणा क्षेत्र स्थित ढेलवरिया की रहने वाली लक्ष्मी का, जो इन दिनों बाढ़ पीड़ित कैंप में रह ही हैं। अपनी बड़ी बहन के कपड़ा सिलाई में मदद कर रही थीं। बाढ़ के कारण यहां के 30 हजार से अधिक परिवार परेशान हैं। सभी के लिए प्रशासन ने रहने की उचित व्यवस्था की है। लेकिन, एक क्षेत्र ऐसा भी है, जहां पर करीब 150 लोग खुद ही टेंट लगाकर रहने के लिए मजबूर हैं। कैंप के बगल में एक प्राइमरी स्कूल है, वह भी पूरी तरह से भरा है। एक स्वास्थ्य कैंप लगाया गया है। दैनिक भास्कर की टीम ने इस कैंप में रहकर इन सभी पीड़ितों से बातचीत की। लोगों ने कहा- सरकार दाल-चावल के अलावा और चीजें भी खाने को भेजे। बच्चे दूध और केला के लिए रो रहे हैं। पढ़िए पूरी रिपोर्ट… बच्चे बोले- मच्छर बहुत काट रहे हैं 10 फीट चौड़ी गली में लगभग 1 किलोमीटर अंदर जाने पर हम ढेलवरिया इलाके में स्थित बड़ी मंदिर के पास पहुंचे। हालांकि, मंदिर में भी पानी पहुंच गया है। उसके कुछ ही दूर पर एक खाली मैदान में 50 से अधिक टेंट लगे हैं, इसमें 150 लोग रह रहे हैं। यहां प्रशासन लोगों को खाना पहुंचा रही है। हमारे पहुंचने पर वहां कुछ बच्चे खाना खाते हुए दिखे। बच्चों की थाली में दाल और चावल था। वह बड़े ही चाव से उसे खा रहे थे। हमने उनसे पूछा कि आप कहां रह रहे हैं तो उन्होंने कहा कि हमारा घर डूब गया है। इसलिए हम लोग यहां रह रहे हैं। उन्होंने बताया कि बाढ़ के कारण स्कूल भी नहीं जा पा रहे हैं। बिजली भी नहीं है। मच्छर बहुत काट रहे हैं। लोग बोले- विधायक एक भी दिन मिलने नहीं आए थोड़ा आगे बढ़ने पर इस पूरे शिविर की महिला और पुरुष आपस में बातचीत कर रहे थे। उनका कहना था कि सभी राहत कैंप में बढ़िया भोजन और राहत सामग्री बांटी जा रही है। लेकिन, हमारे कैंप में कोई नहीं आ रहा है। क्योंकि हमारा इलाका शहर से काफी अंदर गली में है। हमारी टीम उनके बीच पहुंची और पूछा कि आपसे मिलने कोई नेता आए? जवाब मिला- हमारे विधायक रविंद्र जायसवाल हैं जो एक भी दिन हम लोगों से मिलने नहीं पहुंचे। लोगों की बातचीत हम कहीं जा नहीं पा रहे मुन्ना ने कहा- हम रोज सब्जी बेचने के लिए गली मोहल्ले में जाते हैं, लेकिन बाढ़ आ गई है। इसलिए कहीं नहीं जा पा रहे हैं। राहत के नाम पर कुछ नहीं मिल रहा है। बस सुबह शाम दाल और चावल दिया जा रहा है। सुबह नाश्ते में चना आ जाता है। घर डूबा तो उसमें हमारा पूरा सामान डूब गया है। अब लगभग 15 दिन से 1 महीने तक जब तक बढ़ नहीं खत्म होगी, हम लोग यहीं पर रहेंगे। हम लोग टेंट में खाना भी बनाते हैं। 1 माह में दूसरी बार घर छोड़ना पड़ा पप्पू वर्मा ने कहा- इस पूरे इलाके में सबसे किनारे मेरा घर है, जो सबसे पहले डूब जाता है। मेरे घर में पांच सदस्य हैं। जब बाढ़ आती है तो हम लोग बांस की व्यवस्था करते हैं। फिर एक टेंट बनाते हैं। सभी लोग यहीं पर रहते हैं। एक तरह से यहीं हम लोगों का मोहल्ला बन गया है। इससे पहले जब बाढ़ आई थी तो 5-6 दिन में हम लोग वापस घर चले गए थे। लेकिन, जब दूसरी बार गंगा का जलस्तर बाद तो पिछले 5 दिनों से हम लोग यहां अपना टेंट लगाकर रह रहे हैं। सुबह 10 बजे और शाम को 7.30 बजे खाना आता है। हम लोगों को रात में जागना भी पड़ता है, क्योंकि आवारा पशु यहां घुस जाते हैं। इसको लेकर हमने बहुत बार शिकायत भी की। छोटे बच्चे हैं, उनको भी खतरा है। पत्नी दिव्यांग है, दुकान बंद कर दिन काट रहे सुरेश रघुवंशी ने कहा- हम इडली की दुकान लगाते हैं, लेकिन इस समय दुकान बंद है मेरी पत्नी दिव्यांग है और उसका तबीयत खराब रहता है दवा खरीदने के पैसे नहीं है अब किसी तरह से बाढ़ में समय काट रहे हैं बाढ़ खत्म होगा तो फिर अपनी दुकान लगाएंगे। सारा सामान डूब गया है। बाढ़ में हमारे बच्चे घर का काम करने गए हैं वह जो पैसा लाते हैं उसी से समय काटकर अपना घर चलते हैं। खाना तो मिल रहा है, लेकिन छोटे बच्चे दूध और केला के लिए रो रहे हैं। एक ही शौचालय था, जहां पर काफी भीड़ होती थी। लेकिन, हम लोगों ने शिकायत की तो यहां के पार्षद एक शौचालय और बनवा रहे हैं। 2013 का टूटा रिकार्ड, घर में रहने के लिए दिया मुफ्त कमरा बाढ़ वाले इलाके से थोड़े दूर पर रहने वाले मुकेश का तीन मंजिला मकान है। उन्होंने बताया-4 से 5 परिवार को वह अ​​​​​पने घर में निशुल्क रखें इसके अलावा वह अपने ही घर से लाइट भी दे रखी है, जिससे लोग फोन चार्ज कर सके। पार्षद की मदद से यहां शौचालय भी बनवाया जा रहा है, जिससे इन परिवारों को थोड़ी राहत मिल सके। यह सभी सफाई करते हैं, कोई दुकान लगता है तो कोई घर-घर जाकर काम करता है। लेकिन, सबका रोजगार छिन गया है। इससे पहले 2016 2013 और 2002 में बाढ़ आया था। उसके बाद इस तरह की बाढ़ हमने देखी है। गंगा का जलस्तर रुका है। हम यही मानते हैं कि बाढ़ आगे ना आए। नहीं तो हमारा भी घर डूब जाएगा और 1978 का रिकॉर्ड भी टूट जाएगा। पीड़ितों की 5 डिमांड ------------------------- ये खबर भी पढ़िए- सीतापुर पत्रकार हत्याकांड के 2 शूटर एनकाउंटर में ढेर: सरेंडर करने को कहा तो बरसाई गोलियां; बाबा ने सुपारी देकर कराई थी हत्या सीतापुर में पत्रकार राघवेंद्र बाजपेयी हत्याकांड के दो शूटरों को पुलिस ने मुठभेड़ में मार गिराया है। आज सुबह पुलिस को शूटरों की मूवमेंट की सूचना मिली थी। टीम ने शूटरों की घेराबंदी की। सरेंडर करने के लिए कहा गया, लेकिन उन्होंने फायरिंग कर दी। जवाबी फायरिंग में दोनों मारे गए। पूरी खबर पढ़िए

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