आगरा कॉलेज में तुलसीदास-प्रेमचंद की जयंती के अवसर पर संगोष्ठी:साहित्य और समाज के बीच के संबंधों पर हुई चर्चा

आगरा कॉलेज में राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। यह संगोष्ठी गोस्वामी तुलसीदास और मुंशी प्रेमचंद की जयंती के अवसर पर आयोजित की गई थी। इसमें साहित्य और समाज के बीच के संबंधों पर चर्चा की गई। प्रो मनींद्रनाथ ठाकुर ने कहा कि साहित्य समाज और व्यक्ति के यथार्थ को उकेरता है। उन्होंने कहा कि साहित्यकार ही सामाजिक यथार्थ के साथ भविष्य की संभावनाओं को उजागर करने की क्षमता रखते हैं। प्रो आशुतोष कुमार ने कहा कि तुलसीदास और प्रेमचंद अपने समय की सामाजिक-राजनीतिक विडंबनाओं के संवेदनशील साक्षी थे। प्रो. कुमार ने प्रेमचंद की कृतियों में चित्रित किसानों के संघर्ष को आज के किसान आंदोलनों की पृष्ठभूमि में प्रासंगिक बताया। प्रो. जगदीश्वर चतुर्वेदी ने कहा कि साहित्य केवल तथ्य नहीं, बल्कि संवेदना का चित्रण है। उन्होंने कहा कि दोनों रचनाकार स्त्री चेतना को साहित्य के केंद्र में लाने वाले युगप्रवर्तक हैं। उन्होंने तुलसीदास और प्रेमचंद की रचनाओं में स्त्री की स्वतंत्र इच्छा और पारिवारिक संरचना के महत्व को रेखांकित किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रो. सुनीता रानी घोष ने की और संचालन प्रो. उमाकांत चौबे ने किया। इस अवसर पर अनेक विभागों के शिक्षकों, शोधार्थियों एवं विद्यार्थियों की उल्लेखनीय उपस्थिति रही। सभी ने संगोष्ठी में अपने विचार प्रस्तुत किए और साहित्य और समाज के बीच के संबंधों पर चर्चा की।

Aug 1, 2025 - 03:58
 0
आगरा कॉलेज में तुलसीदास-प्रेमचंद की जयंती के अवसर पर संगोष्ठी:साहित्य और समाज के बीच के संबंधों पर हुई चर्चा
आगरा कॉलेज में राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। यह संगोष्ठी गोस्वामी तुलसीदास और मुंशी प्रेमचंद की जयंती के अवसर पर आयोजित की गई थी। इसमें साहित्य और समाज के बीच के संबंधों पर चर्चा की गई। प्रो मनींद्रनाथ ठाकुर ने कहा कि साहित्य समाज और व्यक्ति के यथार्थ को उकेरता है। उन्होंने कहा कि साहित्यकार ही सामाजिक यथार्थ के साथ भविष्य की संभावनाओं को उजागर करने की क्षमता रखते हैं। प्रो आशुतोष कुमार ने कहा कि तुलसीदास और प्रेमचंद अपने समय की सामाजिक-राजनीतिक विडंबनाओं के संवेदनशील साक्षी थे। प्रो. कुमार ने प्रेमचंद की कृतियों में चित्रित किसानों के संघर्ष को आज के किसान आंदोलनों की पृष्ठभूमि में प्रासंगिक बताया। प्रो. जगदीश्वर चतुर्वेदी ने कहा कि साहित्य केवल तथ्य नहीं, बल्कि संवेदना का चित्रण है। उन्होंने कहा कि दोनों रचनाकार स्त्री चेतना को साहित्य के केंद्र में लाने वाले युगप्रवर्तक हैं। उन्होंने तुलसीदास और प्रेमचंद की रचनाओं में स्त्री की स्वतंत्र इच्छा और पारिवारिक संरचना के महत्व को रेखांकित किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रो. सुनीता रानी घोष ने की और संचालन प्रो. उमाकांत चौबे ने किया। इस अवसर पर अनेक विभागों के शिक्षकों, शोधार्थियों एवं विद्यार्थियों की उल्लेखनीय उपस्थिति रही। सभी ने संगोष्ठी में अपने विचार प्रस्तुत किए और साहित्य और समाज के बीच के संबंधों पर चर्चा की।

What's Your Reaction?

like

dislike

love

funny

angry

sad

wow