'कभी शिक्षकों की दुनिया में थी धाक,अब विवादित पोस्ट पहचान':भड़काऊ पोस्ट करने वालों पर स्टूडेंट्स का निशाना, LU में कार्रवाई का इंतजार
104 साल पुराने लखनऊ विश्वविद्यालय की पहचान बीरबल साहनी और राधा कमल मुखर्जी जैसे दिग्गज प्रोफेसरों से होती है। ये वो शिक्षक थे, जिनकी धाक देश-दुनिया में थी। इनकी बदौलत लखनऊ विश्वविद्यालय का परचम सात समंदर पार भी लहराता था। पर आज के दौर में यहां के विवादित शिक्षकों की खेप नजर आती है। कुछ शिक्षक तो ऐसे भी है, जिनके विवादित बयान शिक्षक की मर्यादाओं को भी तार-तार कर रहे हैं। इनमें से कुछ दुश्मन देश में भी वायरल हो जाते हैं। बावजूद इसके विश्वविद्यालय प्रशासन इनको लेकर बैकफुट पर नजर आता है। हालांकि, विश्वविद्यालय के इन शिक्षकों के बयानों को लेकर कुछ लोग मुखर होकर आवाज भी बुलंद करते हैं। वहीं, स्टूडेंट्स तो खासे नाराज दिखते हैं। जान लीजिए, विवादित शिक्षक और उनके बयानों को... लखनऊ विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर रविकांत चंदन आज के दौर के बेहद विवादित शिक्षकों में से एक हैं। सोशल मीडिया से लेकर टीवी चैनलों में डिबेट के दौरान ये कई बार शिक्षक पद की मर्यादा लांघते नजर आ चुके हैं। खुद को गर्व से JNU प्रोडक्ट और PCS क्वालिफाइड बताने वाले रविकांत पर काशी विश्वनाथ मंदिर ज्ञानवापी प्रकरण से लेकर धीरेंद्र शास्त्री तक पर विवादित पोस्ट करने के आरोप लगे हैं। पहले प्रोफेसर का पोस्ट पढ़िए... पतियों की हत्या के लिए RSS जिम्मेदार प्रोफेसर रविकांत चंदन ने दो महीने पहले सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा, मुस्कान और सोनम रघुवंशी जैसी महिलाएं संघी विचार की उपज हैं। इसको लेकर हसनगंज थाने में प्रोफेसर के खिलाफ शिकायत की गई थी। मुस्कान और सोनम, वो लड़कियां हैं, जिन पर प्रेमी के साथ मिलकर अपने पति की हत्या का आरोप है। मुस्कान मेरठ जेल में बंद है। सोनम मेघालय पुलिस की कस्टडी में है। बता दें कि प्रोफेसर रविकांत चंदन पहले भी विवादों में रहे हैं। 2022 में वाराणसी के काशी विश्वनाथ ज्ञानवापी प्रकरण में उन्होंने विवादित टिप्पणी की थी। 18 मई, 2022 को उनसे छात्रों ने मारपीट भी की थी। जिसके बाद एक छात्र को यूनिवर्सिटी से निष्कासित कर दिया गया था। अब पढ़िए दूसरे शिक्षकों के विवादित पोस्ट... लखनऊ विश्वविद्यालय के छात्रों का क्या कहना है... 'खुलेआम समाज में जहर फैला रहे जहर' लखनऊ विश्वविद्यालय के रिसर्च स्कॉलर प्रत्यूष कहते हैं कि रविकांत चंदन जैसे शिक्षकों का सिर्फ एक एजेंडा है- हिंदुत्व का विरोध करना। हिंदू धर्म का विरोध करना। धर्म का विरोध करना। हिंदू संस्कारों का विरोध करना। हिंदू संस्कृति और उनके प्रति का विरोध करना। यही उनका एजेंडा है और इसी पर वह लगातार काम करते हैं। ये छात्रों के मनों को दूषित कर समाज में जहर फैलाने का काम करते हैं। रविकांत जब सोशल मीडिया पोस्ट पर इतनी भड़काऊ बातें करते हैं, तो बंद कमरे में स्टूडेंट्स को पढ़ाने के दौरान ये न जाने कैसी बातें करते होंगे। इनकी ज्यादातर क्लासेस अंडरग्रेजुएट स्टूडेंट्स की होती है, उनके मन में ये कैसा जहर बोते हैं। इसकी जांच भी होनी चाहिए। 'इनकी फंडिंग की हो जांच' प्रत्यूष कहते हैं कि मेरी यह मांग है कि बड़े स्तर की जांच होनी चाहिए कि आखिर लखनऊ विश्वविद्यालय के शिक्षक ही ऐसे बयान क्यों दे रहे है? ऐसा कोई एक शिक्षक नहीं है। तीन-चार ऐसे शिक्षक हैं, जो हिडेन एजेंडा पर लगातार खुलकर काम कर रहे हैं। सोशल मीडिया के माध्यम से खुलकर भड़काऊ बातें करते हैं, पोस्ट भी करते हैं। ऐसे में इनकी जांच होनी चाहिए कि आखिर इनको ऐसा करने की हिम्मत कहां से मिलती है? इनकी फंडिंग कहां से हो रही है? 'ये शिक्षक कम, राजनेता ज्यादा' बीए के छात्र शिवम कहते हैं कि रविकांत चंदन जैसे शिक्षकों के पास कोई काम नहीं है। मुझे ये शिक्षक कम राजनेता ज्यादा लगते हैं। मेरा ये कहना है कि यदि इन्हें राजनीति ही करनी है, तो यहां से इस्तीफा देकर जाए चुनाव लड़ें। यहां कैंपस में बैठकर जो कर रहे हैं वह ठीक नहीं है। सोशल मीडिया और ट्विटर के माध्यम से कभी संघ का विरोध। कभी किसी धर्मगुरु पर कमेंट वो सिर्फ यही काम करते हैं। असल में इनके पास कोई काम नहीं है। कुछ साल पहले भी इन्होंने ऐसा ही बयान दिया था, जिसके बाद खूब हंगामा हुआ था। उसे मामले में अभी भी मुकदमा चल रहा है। अब जान लीजिए, ऐसे शिक्षकों पर दूसरे शिक्षक क्या कहते हैं... लखनऊ विश्वविद्यालय के पॉलिटिकल साइंस डिपार्टमेंट के शिक्षक अमित कुशवाहा कहते हैं कि किसी शिक्षक की सोच सियासी दलों से मेल खा सकती है। इसमें कोई बुराई नहीं है पर ये समझना होगा कि शिक्षक का पहला दायित्व राष्ट्र के प्रति है। राष्ट्र निर्माण में उसकी अहम भूमिका होती है, शिक्षक ही देश निर्माण करता है। भावी कर्णधारों को तैयार करने की जिम्मेदारी उसकी होती है। भड़काऊ पोस्ट करने पर कठघरे में खड़े होना पड़ेगा शिक्षकों को ये सोचना होगा कि वो कैसा उदाहरण सेट करते हैं। पक्ष या विपक्ष का विरोध करने पर कहीं ऐसा तो नहीं कि वो राष्ट्रद्रोही की श्रेणी में खड़े हो रहे हैं। भड़काऊ पोस्ट या एजेंडा आधारित पोस्ट करने पर सवाल जरूर खड़े होंगे। ऐसे में कोई भी बयान या पोस्ट करने से पहले बेहद सतर्क रहना होगा। यदि लापरवाही बरती, तो सवाल जरूर खड़े होंगे और फिर कठघरे में भी खड़े होना पड़ेगा। अब जान लीजिए, इस मामले में विश्वविद्यालय प्रशासन का क्या कुछ कहना है... लखनऊ विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो.मनुका खन्ना से जब दैनिक भास्कर ने इस विषय पर सवाल किया, तो उनका कहना था कि मानव स्वभाव है। सभी के विचारों में थोड़ा फर्क होता है। कोई ऐसी बात नहीं है। अगर विचार व्यक्त हो जाएं, डिस्कशन हो जाए तो सभी समस्याएं सॉल्व हो जाएगी। अब जान लें कि यूपी सरकार के उच्च शिक्षा मंत्री का इस विषय पर क्या कहना है... उच्च शिक्षा मंत्री योगेंद्र उपाध्याय कहते हैं कि मैंने पहले भी कहा है कि देश विरोधी व्यक्तित्व नहीं बर्दाश्त होगा। यदि ऐसे बयान आएंगे तो कार्रवाई जरूर होगी। अब इसमें कोई देरी नहीं होगी। शिक्षकों के प्रति मन में हमेशा से आदर रहा है। मुझे उम्मीद है कि पद की गरिमा का भी मान रखा जाए

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