प्रेमचन्द की 145 वीं जयंती:साहित्यकारों ने प्रेमचन्द की तरक्कीपसंदी' पर की चर्चा :प्रो. नलिन रंजन बोले- प्रेमचन्द आर्य समाज के प्रगतिशील विचारों से प्रेरित
लखनऊ में आल इंडिया कैफी आजमी एकेडमी में शुक्रवार को उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचन्द की 145वीं जयंती मनाई गई। एकेडमी के प्रतिष्ठित 'कैफी सेमिनार हाल' में आयोजित इस वार्षिक कार्यक्रम का शुभारंभ प्रेमचन्द की तस्वीर पर माल्यार्पण से हुआ। कार्यक्रम की थीम 'आज का दौर और मुंशी प्रेमचन्द की तरक्कीपसंदी' रखी गई। यह थीम वर्तमान समय में उनकी लेखनी की प्रासंगिकता को उजागर करती है। एकेडमी के ज्वाइंट सेक्रेटरी सैयद क्राहीम हुसैन ने सभी मेहमानों का स्वागत किया। उन्होंने बताया कि यह आयोजन प्रलेस, जलेस, इप्टा व जसम के सहयोग से हर साल किया जाता है। साहित्यिक योगदान पर चर्चा की कार्यक्रम में वक्ताओं ने प्रेमचन्द की प्रगतिशील सोच और साहित्यिक योगदान पर चर्चा की। वरिष्ठ आलोचक वीरेन्द्र यादव ने कहा कि प्रेमचन्द एक ऐसे भारत का सपना देखते थे। वह भारत धर्म और जाति के भेदभाव से मुक्त हो। वहां समता, स्वतंत्रता और भाईचारा हो।साहित्यकार सूरज बहादुर थापा ने प्रेमचन्द को 'राष्ट्रीय कथाकार' की उपाधि दी। उन्होंने कहा कि जिस तरह मैथलीशरण गुप्त और दिनकर राष्ट्रकवि हैं, प्रेमचन्द भी वैसी ही पहचान के हकदार हैं। प्रेमचन्द आर्य समाज के प्रगतिशील विचारों से प्रेरित प्रो. नलिन रंजन सिंह ने प्रेमचन्द को आर्य समाज के प्रगतिशील विचारों से प्रेरित बताया। उन्होंने कहा कि जब वैज्ञानिक चेतना पर हमला हो रहा है, तब प्रेमचन्द की प्रगतिशील साहित्यिक धारा और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। लेखक कौशल किशोर ने जोर देकर कहा कि आज के दौर में प्रेमचन्द की सबसे ज्यादा जरूरत है। प्रेमचन्द हिन्दी-उर्दू साहित्य में हवा के ताज़ा झोंके प्रो. खान अहमद फारूख ने उनकी कहानियों में मौजूद इंसानियत और फिरकापरस्ती के खिलाफ उनके रुख को याद किया। कार्यक्रम के अध्यक्ष प्रो. नदीम हसनैन ने कैफी आजमी एकेडमी की सराहना की। उन्होंने कहा कि यह मंच विभिन्न भाषाओं और विचारों को जोड़ने का काम कर रहा है। उन्होंने प्रेमचन्द को हिन्दी-उर्दू साहित्य में हवा के ताज़ा झोंके जैसा बताया।कार्यक्रम का संचालन प्रो. रेशमा परवीन ने किया। उन्होंने बीमार प्रो. अली अहमद फात्मी का लेख पढ़कर सुनाया।

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